भावत्-भावम् सिद्धांत - Astrovanni.in

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 ♦️भावत्-भावम् सिद्धांत♦️

यानि की एक भाव जैसा ही दूसरा भाव। इसे लग्न से देखते हैं।

♦️इसे काल पुरुष के मेष लग्न से भी देखते हैं। लग्न से वांछित भाव की जितनी दूरी होती है, उसी भाव से, पुनः उतनी ही दूरी पर स्थित भाव को ही भावत् भावम कहा जाता है। अर्थात भाव से उतनी ही दूरी पर दूसरा भाव।


♦️जैसे चतुर्थ भाव से चार भाव आगे गिनने पर सप्तम भाव आया, यह चतुर्थ भाव का 'भावात् भावम' हुआ। दशम भाव से 10 भाव आगे गिनने पर सप्तम भाव ही आएगा इसलिए सप्तम भाव दशम भाव का भावात् भावम् है।

♦️भावात् भावम के अनुसार-

♦️ प्रथम भाव का 'भावत भावम' है, प्रथम भाव

♦️ द्वितीय भाव का 'भावत भावम' है, तृतीय भाव

♦️ तृतीय भाव का 'भावत भावम' है, पंचम भाव

♦️ चतुर्थ का 'भावात भावम' है, सप्तम भाव

♦️ पंचम भाव का 'भावात भावम' है, नवम भाव

♦️ षष्ठ भाव का, 'भावात भावम' है, एकादश भाव

♦️ सप्तम भाव का, 'भावात भावम' लग्न (प्रथम भाव)

♦️ अष्टम भाव का, 'भावात भावम' तृतीय भाव

♦️ नवम भाव का 'भावात भावम' पंचम भाव

♦️ दशम भाव का, 'भावात भावम' सप्तम भाव

♦️  एकादश भाव का, 'भावात भावम' नवम भव

♦️ द्वादश भाव का, 'भावात भावम' एकादश भाव ही भावात् भावम है।

♦️सामान्य नियम-

1. भावात् भावम किसी भाव की छवि को दिखाता है, वह मात्र दर्पण है उस भाव का। बिल्कुल उसी भाव के समान नहीं है।

♦️यह उस भाव का वास्तविक वैसा ही फल नहीं देता है, परन्तु उस भाव में भविष्य का सूचक है।

♦️यह कल्पना और इच्छा को दर्शाता है, जब किसी भाव का स्वामी 'भावत् भावम' में हो।

♦️ जब भाव का स्वामी, अपने भाव में होता है, तब प्रभाव वास्तविक होते है। उस भाव के फल वृद्धि व सम्पन्नता को दर्शाते हैं।

♦️ द्वितीय, चतुर्थ, षष्ठ, दशम व द्वादश किसी भी भाव का 'भावात् भावम' नहीं हैं। यह अपने स्वतंत्र परिणाम देते हैं।

♦️ भाव संकल्प है, वायदा है, भावात भावम् उस भाव की इच्छा है, छाया है. एक और एक 11 जैसा है। यदि किसी भाव का स्वामी और 'भावात् भावम' का स्वामी परस्पर संम्बन्ध बनाते हैं तो यह शुभ फलों व परिणामों में वृद्धि करते हैं।

♦️ जब भावात् भावम का स्वामी, भाव में स्थित हो, तब प्रभावी होता है।

♦️ जब भाव का कारक अपने भावात भावम में होता है, तब उस भाव के गुणों में वर्धन होता है।

जैसे गुरु धन व समृद्धि का कारक है यदि धन भाव में गुरु हो तो धन व समृद्धि के मूल्यों में वृद्धि होती है।

अर्थात यदि भावेश, भावात् भावम का भाव व कारक परस्पर सम्बन्ध बनाते हैं, तो निर्णय पूर्णता की ओर बढ़ते हैं।

♦️ वर्ग कुंडलियों में भी यह सिद्धान्त शुभ परिणाम देखने में सहायक है।काम्या वैदिक एस्ट्रो की पोस्ट 

♦️ गोचर में तथा दशा के विश्लेषण में भी भावात् भावम् का सिद्धान्त कलित करने में सहायक है।

♦️भाव व उनके भावात् भावम् विचार♦️

♦️प्रथम भाव प्रथम भाव का भावात् भावम लग्न ही है। सप्तम भाव का भावात् भावम प्रथम भाव ही है, यह जीवन साथी के सम्बन्धों का भविष्य भी है। यदि लग्न में शुभ ग्रह हों, शुभ प्रभाव हो तो वैवाहिक जीवन को सुखी बनाते हैं।

यदि अशुभ प्रभाव हो, तो वैवाहिक जीवन के सम्बन्धों में संघर्ष, कष्ट देखे जाते हैं।

♦️तृतीय भाव, द्वितीय तथा अष्टम भाव का भावात् भावम है। आपके धन, छोटे भाई-बहिन और परिवार का भविष्य दर्शता है। तीसरे परिवार पर अशुभ प्रभाव द्वितीय और अष्टम भाव दोनों की हानि करता है। दरिद्रता, दीनता व भिखारी जैसा बना देता है।

♦️आठवें भाव का भावात् भावम मृत्यु के समय की आपकी दशा भी बताता है।

♦️पंचम भाव पंचम भाव तीसरे व नवम भाव का भावात् भावम है। तीसरा भाव छोटे भाई-बहिनों व संचार का है। पंचम भाव व्यवहार कौशल और अनुजों के पराक्रम का सूचक है। यदि तीसरा भाव और पंचम भाव शुभ प्रभाव में होकर बलवान हो तो जातक लेखन कार्य में कुशलता प्राप्त करता है।

♦️पंचम भाव, नवम भाव का भावात् भावम है। नवम भाव दैवीय कृपा, पिता और धार्मिक कर्तव्यों न व्यवहारों का सूचक है। यदि पंचम भाव बलवान हो, शुभ प्रभाव में हो, तो जातक धर्ममय व्यवहार और कर्तव्यों में भाग लेता है। यदि शुभ प्रभाव हो तो पंचम और तृतीय भाव के फलों में शुभता देखी जाती है। अशुभ सम्बन्ध प्रतिकूल प्रभाव देते हैं।

♦️सप्तम भाव 7वां भाव चतुर्थ का भावात भावम है अतः मात सुख, घर, वाहन के सुखों का संकेत देता है।

सप्तम भाव जीवन साथी के साथ व्यवहारों का दर्शन कराता है, वहीं चतुर्थ भाव के भविष्य के शुभाशुभ को भी दर्शाता है।

सप्तम भाव दशम भाव का भी भावात भावम है। दसवा भाव जातक के कर्मों से प्राप्त मान-सम्मान व सामाजिक प्रतिष्ठा को बताता है। समाज में आपकी प्रतिष्ठा पहचान, वह आजीविका को दर्शाता है।

♦️नवम भाव 11 वें भाव का भावात भावत् नवम भाव है। 11 वों भाव बड़े भाई और लाभ का है। नवें भाव से भी 11वों भाव का मूल्यांकन करना चाहिये।

♦️पंचम भाव का भावात् भावम भी है अतः आपकी संतान का भावी भविष्य का दर्शन कराता है। यदि पंचमेश नवम भाव में हो, तो यह गोद ली हुई संतान हो सकती है। हो सकता है, आपकी अपनी संतान न हो।

♦️नवम भाव पर शुभ ग्रहों का संबंन्ध होने से पंचम व 11वें भाव की शुभता और गुणवत्ता की वृद्धि हो जाती है। पंचम भाव सूक्ष्म बुद्धि व 11वां भाव लाभ की वृद्धि देता है। अशुभ प्रभाव शुभता की सीमाओं को बाधित करता है।

♦️एकादश भाव 11वां भाव 6ठे से 6ठा भाव है। वास्तव में छठा भाव इस जीवन में मनोवाच्छित इरादों को प्राप्त करने का दृढ़ निश्चिय का संकल्प का भाव है। यदि 11 वें भाव पर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो, तो जातक संघर्ष करके निरन्तर आगे बढ़ता हुआ, अपने उद्देश्यों को पूर्ण करता है। 11 वां भाव लाभ और वृद्धि दोनों का है। प्राप्ति का भाव भी है।

♦️द्वादश भावः 12वें भाव का भावात् भावम 11 वों भाव है यदि शुभ प्रभाव 11वें भाव पर हो तो 12वें भाव के व्यय को बढ़ावा मिलेगा। यदि 11 वें भाव पर अशुभ प्रभव हो तो, तो व्यय को कम करता है या व्यर्थ की खरीदारी होती है।

♦️जब भाव, भावात् भावम का भाव व कारक, परस्पर सम्बन्ध बनाते हैं तो परिणामों में शुभता देखी जाती है। शुभ अनुभव होते हैं।

♦️ भाव संकल्प को निभाता है, भावात भावम्, उसी संकल्प को दोहराता है तथा कारक उस संकल्प को परिणाम में परिवर्तित करता है।

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